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Showing posts from February, 2015

सेवा

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वे सवेरे-सवेरे टहल कर लौटे तो कुटिया के बाहर एक दीन-हीन व्यक्ति को पड़ा पाया| उसके शरीर से मवाद बह रहा था| वह कुष्ठ रोग से पीड़ित था| उन महानुभाव ने उसे देखा| उस व्यक्ति ने धीमी आवाज में हाथ जोड़ते हुए कहा - "मैं आपके दरवाजे पर शांतिपूर्वक मरने आया हूं|" रोगी की हालत से उनका हृदय द्रवित हो उठा, पर उसे आश्रय कैसे दें! वे अकेले तो थे नहीं और भी बहुत-से भाई-बहन साथ में रहते थे| क्षणभर मन में द्वंद्व रहा| अनंतर वे कुटिया में चले गए, पर अंत अंतर्द्वंद्व ने संघर्ष का रूप धारण कर लिया| अंतर से किसी ने कहा - 'तू अपने को सेवक कहता है! इंसानियत का दावा करता है और उस दुखी बेबस आदमी को ठुकराता है!' बाहर से किसी ने जवाब दिया - "मेरे लिए तो कोई बात नहीं है, पर दूसरे लोग ऐसे रोगी को रखना पसंद नहीं करेंगे|" 'ठीक है, तब तू मानव-जाति की सेवा करने का दंभ छोड़ दे|' अंतर की आवाज में खीज थी| संघर्ष और तीखा हुआ और अंत में निश्चय किया कि व्यक्ति जो सही माने उसका पालन करे दूसरों का राजी या नाराजगी की परवाह न करे| जो आशा लेकर आया है जीवन के अंतिम क्ष

क्रोध है असली चाण्डाल

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एक पण्डितजी महाराज क्रोध न करने पर उपदेश दे रहे थे| कह रहे थे - "क्रोध आदमी का सबसे बड़ा दुश्मन है, उससे आदमी की बुद्धि नष्ट हो जाती है| जिस आदमी में बुद्धि नहीं रहती, वह पशु बन जाता है|" लोग बड़ी श्रद्धा से पण्डितजी का उपदेश सुन रहे थे पण्डितजी ने कहा - "क्रोध चाण्डाल होता है| उससे हमेशा बचकर रहो|" भीड़ में एक ओर एक जमादार बैठा था, जिसे पण्डितजी प्राय: सड़क पर झाड़ू लगाते हुए देखा करते थे| अपना उपदेश समाप्त करके जब पण्डितजी जाने लगे तो जमादार भी हाथ जोड़कर खड़ा हो गया| लोगों की भक्ति-भावना से फूले हुए पण्डित भीड़ के बीच में से आगे आ रहे थे| इतने में पीछे से भीड़ का रेला आया और पण्डितजी गिरते-गिरते बचे! धक्के में वे जमादार से छू गए| फिर क्या था| उनका पारा चढ़ गया| बोले - "दुष्ट! तू यहां कहां से आ मरा? मैं भोजन करने जा रहा था| तूने छूकर मुझे गंदा कर दिया| अब मुझे स्नान करना पड़ेगा|" उन्होंने जमादार को जी भरकर गालियां दीं| असल में उनको बड़े जोर की भूख लगी थी और वे जल्दी-से- जल्दी यजमान के घर पहुंच जाना चाहते थे| पास ही में गंगा नदी थी ला

हम चिल्लाते क्यों हैं गुस्से में?

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एक बार एक संत अपने शिष्यों के साथ बैठे थे। अचानक उन्होंने सभी शिष्यों से एक सवाल पूछा; "बताओ जब दो लोग एक दूसरे पर गुस्सा करते हैं तो जोर-जोर से चिल्लाते क्यों हैं?" शिष्यों ने कुछ देर सोचा और एक ने उत्तर दिया : "हम अपनी शांति खो चुके होते हैं इसलिए चिल्लाने लगते हैं।" संत ने मुस्कुराते हुए कहा : दोनों लोग एक दूसरे के काफी करीब होते हैं तो फिर धीरे-धीरे भी तो बात कर सकते हैं। आखिर वह चिल्लाते क्यों हैं?" कुछ और शिष्यों ने भी जवाब दिया लेकिन संत संतुष्ट नहीं हुए और उन्होंने खुद उत्तर देना शुरू किया। वह बोले : "जब दो लोग एक दूसरे से नाराज होते हैं तो उनके दिलों में दूरियां बहुत बढ़ जाती हैं। जब दूरियां बढ़ जाएं तो आवाज को पहुंचाने के लिए उसका तेज होना जरूरी है। दूरियां जितनी ज्यादा होंगी उतनी तेज चिल्लाना पड़ेगा। दिलों की यह दूरियां ही दो गुस्साए लोगों को चिल्लाने पर मजबूर कर देती हैं। जब दो लोगों में प्रेम होता है तो वह एक दूसरे से बड़े आराम से और धीरे-धीरे बात करते हैं। प्रेम दिलों को करीब लाता है और करीब तक आवाज पहुंचाने के लिए चिल्